72 घंटे, दो लाशें, एक कहानी – कौशाम्बी पुलिस की ‘क्राइम थ्रिलर’ जैसी कार्रवाई

कौशाम्बी: जरा सोचिए एक शांत गांव की सुबह, खेतों में खून से सना एक युवक और महिला का शव गांव में सन्नाटा, अफवाहों का बाजार गर्म और पुलिस के सामने चुप्पी साधे दो लाशें! लेकिन 72 घंटे बाद वही लाशें अब एक पूरी कहानी बयां कर रही हैं – साजिश, शक, संबंध और सनसनी। यह कोई फिल्म नहीं, कौशाम्बी पुलिस की हकीकत है, जिसने इस दोहरे हत्याकांड की गुत्थी को सुलझाकर दिखा दिया कि अपराध कितना भी जटिल क्यों न हो, कानून की पकड़ से बच नहीं सकता।

घटना फ्लैशबैक खेत में मिलीं दो लाशें, फैली दहशत

दिनांक 29 जून की सुबह थाना चरवा क्षेत्र के गोहनी गांव में उस वक्त हड़कंप मच गया, जब एक युवक और एक महिला की लाश खेत में पड़ी मिली। कोई चाकू नहीं, कोई गवाही नहीं, पुलिस के सामने सिर्फ खामोशी थी। लेकिन खामोशियों के पीछे चीखें थीं, और उन चीखों को सुनने का काम किया एसपी राजेश कुमार के नेतृत्व में बनी क्रैक टीम ने।

72 घंटे की थ्रिलर जांच सर्विलांस, साजिश और सरिया

पुलिस ने जांच की कमान संभाली और जो सामने आया वह चौंका देने वाला था। महिला और युवक के बीच पहले से अवैध संबंध थे। गोरे लाल का साथी वीरेंद्र इस रिश्ते से नाराज था। 28 जून की रात तीनों के बीच झगड़ा हुआ और वहीं मौत की पटकथा लिखी गई। पहले महिला की गला दबाकर हत्या, फिर गोरे लाल को सरिया से पीट-पीटकर मौत के घाट उतार दिया गया।

एक्शन मोड ऑन मुठभेड़ में घायल आरोपी, दूसरा दबोचा गया

मंगलवार की रात पुलिस ने वीरेंद्र पुत्र जगपति निवासी मलाका को जंगल में घेर लिया। उसने फायर किया, जवाब में गोली चली और उसके पैर में लगी। उसे मौके से दबोच लिया गया। दूसरे आरोपी शिवबाबू पुत्र बचान  निवासी भिखारी का पुरवा को मंझनपुर क्षेत्र से मुखबिर की सूचना पर दबोचा गया।

सबूत भी बोले – बरामद हुआ तमंचा, कारतूस और सरिया

एक तमंचा 315 बोर

एक खोखा व एक जिंदा कारतूस

हत्या में प्रयुक्त लोहे का सरिया

ये सिर्फ हथियार नहीं, उस रात की पूरी कहानी की चुप गवाहियां हैं।

पुलिस नहीं, साइंटिफिक जासूस बनी टीम

सीसीटीवी, मोबाइल लोकेशन, तकनीकी सर्विलांस कौशाम्बी पुलिस ने इस केस को जिस प्रोफेशनल अंदाज में खोला, वह किसी वेब सीरीज से कम नहीं। एसपी राजेश कुमार ने टीम को तेज तकनीकी और तथ्यशुदा कार्रवाई के लिए सराहना किया और साफ कहा, जनपद में अपराधियों के लिए कोई जगह नहीं, यह एक कड़ा संदेश है।

ये सिर्फ केस नहीं, सिस्टम में भरोसे की वापसी है

72 घंटे में हत्या का खुलासा सिर्फ एक आंकड़ा नहीं, ये पुलिस की प्रोएक्टिव कार्यशैली का प्रतीक है जहां ना सिफारिश चली, ना साजिश बची। रिश्तों में शक, और शक में साजिश  इसका अंत हमेशा खून से सना होता है। इस केस ने साबित कर दिया कि अपराध की कितनी भी परतें हों, सच्चाई उजागर हो कर ही रहती है।

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