प्रयागराज के करछना इलाके में उस वक्त बवाल मच गया जब भीम आर्मी और आजाद समाज पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष चंद्रशेखर आज़ाद ‘रावण’ को प्रशासन ने हाउस अरेस्ट कर लिया। वह करछना के इटौसी गांव जा रहे थे, जहां हाल ही में दलित युवक की हत्या की वारदात सामने आई थी। प्रशासन ने कानून-व्यवस्था का हवाला देते हुए उनकी यात्रा को रोक दिया, जिसके बाद उनके समर्थकों ने सड़क पर उतरकर हंगामा कर दिया।
हाउस अरेस्ट की खबर फैलते ही समर्थक भड़क उठे। करछना क्षेत्र के भडेवरा बाजार में भारी संख्या में समर्थकों ने जुटकर पत्थरबाजी शुरू कर दी। पुलिस और प्रशासन की मौजूदगी में हुई इस हिंसा में कई सरकारी और निजी वाहन क्षतिग्रस्त हो गए। SDM करछना की गाड़ी पर भी हमला हुआ। प्रदर्शनकारियों ने आम नागरिकों को भी नहीं बख्शा और राह चलते लोगों पर भी पत्थर फेंके, जिससे भगदड़ मच गई।
सूत्रों के मुताबिक, भीम आर्मी के कम से कम 17 कार्यकर्ताओं को पुलिस ने मौके से हिरासत में लिया है। घटना को देखते हुए पूरे करछना इलाके में भारी पुलिस बल तैनात कर दिया गया है। प्रशासन का कहना है कि स्थिति को नियंत्रित करने के लिए क्षेत्र में अतिरिक्त सुरक्षा व्यवस्था लागू की गई है और लगातार पेट्रोलिंग कराई जा रही है।
हत्या के मामले में चंद्रशेखर का गांव पहुंचना बना संकट
जिस गांव में चंद्रशेखर आज़ाद को जाना था, वहां कुछ दिन पहले एक दलित युवक को जिंदा जलाकर मारने की सनसनीखेज घटना हुई थी। चंद्रशेखर इस घटना के विरोध और पीड़ित परिवार से मिलने की मंशा से गांव जा रहे थे। लेकिन पुलिस ने उन्हें कौशांबी जाते समय प्रयागराज में ही सर्किट हाउस में रोक दिया। प्रशासन का तर्क था कि उनके साथ बड़ी संख्या में समर्थकों की मौजूदगी कानून-व्यवस्था के लिए खतरा बन सकती थी।
कौशांबी कांड ने फैलाई सियासी आग
कौशांबी जिले में एक 8 साल की पाल समाज की बच्ची के साथ कथित दुष्कर्म का मामला सामने आने के बाद से सियासी पारा चढ़ गया है। इस केस में जहां सत्ताधारी दल पर निष्क्रियता के आरोप लगे हैं, वहीं विपक्ष लगातार पीड़िता के पक्ष में सड़क पर उतर रहा है। इसी कड़ी में चंद्रशेखर आज़ाद भी पीड़िता के परिवार से मिलने का प्रयास कर रहे थे। लेकिन प्रशासन ने उन्हें हाउस अरेस्ट कर दिया, जिससे मामला और भड़क गया।
इस घटना ने प्रशासन की भूमिका और लोकतांत्रिक अधिकारों के बीच टकराव को भी उजागर किया है। एक तरफ प्रशासन कानून व्यवस्था को बनाए रखने की कोशिश में सख्ती बरत रहा है, वहीं दूसरी ओर विपक्षी दल और सामाजिक संगठन इसे लोकतांत्रिक अधिकारों के दमन के रूप में देख रहे हैं। इस टकराव में आम जनता पिसती नजर आ रही है, जिन्हें अचानक हुए हिंसा और पत्थरबाजी के कारण जान बचाकर भागना पड़ा।