कौशांबी में समाजवादी पार्टी की युवा इकाई लोहिया वाहिनी द्वारा एक पोस्टर या बैनर में बाबा साहब डॉ. भीमराव अंबेडकर के साथ समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव की तस्वीर लगाने पर विवाद खड़ा हो गया है। इस पर संत शिरोमणि रविदास पीठ के राष्ट्रीय महामंत्री ने कड़ी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने लोहिया वाहिनी अध्यक्ष और अखिलेश यादव दोनों की तीखी निंदा की है।
राष्ट्रीय महामंत्री का कहना है कि बाबा साहब का राजनीतिक और सामाजिक योगदान ऐतिहासिक और सर्वमान्य है, और ऐसे महापुरुषों के साथ किसी राजनेता की तुलना या उनकी छवि का राजनीतिक लाभ के लिए प्रयोग अनुचित है।
समाजवादी पार्टी पर क्या प्रभाव पड़ सकता है
1. दलित वोट बैंक पर प्रभाव
बाबा साहब अंबेडकर दलित समुदाय के आदर्श और प्रेरणा स्रोत हैं। उनकी छवि का किसी राजनीतिक दल द्वारा उपयोग दलित वोट बैंक को साधने की कोशिश के रूप में देखा जाता है।
— समाजवादी पार्टी (सपा) शायद यह संदेश देना चाह रही थी कि वह बाबा साहब के विचारों को मानती है और दलितों के हक़ में है।
— लेकिन रविदास पीठ जैसी संस्थाएं इसे राजनीतिक हथियाकरण मानकर नाराज़ हो सकती हैं, जिससे दलित समुदाय में सपा के प्रति असंतोष भी पनप सकता है।
2. सामाजिक संगठनों की नाराज़गी
रविदास पीठ जैसी संस्थाएं दलित समुदाय में गहरी पकड़ रखती हैं। उनकी नाराज़गी से सपा की छवि को सामाजिक विश्वसनीयता के स्तर पर नुकसान हो सकता है, खासकर उत्तर प्रदेश जैसे राज्य में जहाँ जातीय समीकरण अहम हैं।
3. विपक्षी दलों को मौका
बसपा (बहुजन समाज पार्टी) और भाजपा (भारतीय जनता पार्टी) जैसी पार्टियाँ इस विवाद को मुद्दा बनाकर सपा पर हमला बोल सकती हैं कि सपा दलित महापुरुषों का केवल राजनीतिक इस्तेमाल करती है, उनके विचारों का सम्मान नहीं करती।
4. अखिलेश यादव की व्यक्तिगत छवि
इस तरह के विवाद से अखिलेश यादव की व्यक्तिगत छवि पर भी असर पड़ सकता है कि वे बाबा साहब के योगदान को राजनीतिक फायदे के लिए साधारण बना रहे हैं। विरोधियों को उनकी आलोचना करने का एक और मौका मिल सकता है।
5. सामाजिक ध्रुवीकरण का खतरा
ऐसे मुद्दे अक्सर समाज में ध्रुवीकरण बढ़ा सकते हैं। इससे दलित बनाम गैर-दलित तनाव, या सपा समर्थक बनाम विपक्ष समर्थक तनाव गहरा सकता है — खासकर चुनावी वर्ष में यह मुद्दा तेज़ हो सकता है।