बेसहारा हरिराम को मिला सहारा, वृद्धाश्रम संचालक आलोक रॉय ने फिर जगाई मानवता की लौ

कौशाम्बी: जिसका कोई नहीं होता, उसका खुदा होता है, फिल्मी पर्दे का यह संवाद शनिवार को हकीकत बन गया जब मंझनपुर के विकास भवन परिसर में 80 वर्षीय विकलांग बुजुर्ग हरिराम मिश्र मदद की आस में भटकते नजर आए। उम्र और लाचारी से थके हुए हरिराम की हालत देखकर लोग नजरें फेरते रहे, लेकिन ओसा स्थित वृद्धाश्रम के संचालक आलोक रॉय ने जो किया, वह समाज के लिए मिसाल बन गया।

बताया जाता है कि आलोक रॉय किसी निजी कार्य से मंझनपुर विकास भवन आए थे। उसी दौरान उन्होंने देखा कि एक बुजुर्ग व्यक्ति बैशाखियों के सहारे बेहद धीमी चाल से किसी उम्मीद की ओर बढ़ रहे हैं। आलोक रॉय तुरंत आगे बढ़े, उनका हालचाल पूछा। हरिराम ने बताया कि न तो उनके पास ठिकाना है, न कोई सहारा और न ही भोजन का कोई इंतज़ाम।

इंसानियत की एक मिसाल पेश करते हुए आलोक रॉय ने बिना देर किए हरिराम को अपने साथ ओसा स्थित वृद्धाश्रम ले जाने का निर्णय लिया। वहां पहुंचते ही उन्हें स्नान कराया गया, साफ कपड़े पहनाए गए और गरम भोजन से उनका पेट भरा गया। आज हरिराम मिश्र वृद्धाश्रम में न सिर्फ सुरक्षित हैं, बल्कि एक गरिमामय और सम्मानजनक जीवन बिता रहे हैं। उन्हें स्नेह, देखभाल और वह सम्मान मिल रहा है, जिसकी उम्र के इस पड़ाव पर सबसे अधिक आवश्यकता होती है।

*आलोक रॉय ने बताया* कि हम सबको यह समझना होगा कि बुजुर्ग बोझ नहीं, बल्कि हमारे समाज की जड़ें होते हैं। हरिराम को देखकर मन विचलित हो गया। सोचा, अगर आज इनका सहारा नहीं बनूंगा, तो शायद कल किसी और का भी ऐसा ही हश्र हो। वृद्धाश्रम सिर्फ छत नहीं देता, हम यहां अपनापन देने की कोशिश करते हैं।

यह कोई पहली बार नहीं है जब आलोक रॉय ने बेसहारा लोगों की मदद की हो। बीते वर्षों में वह कई लावारिस बुजुर्गों को नया जीवन दे चुके हैं। सोशल मीडिया की मदद से वह कई बुजुर्गों को उनके परिवारों से मिलवा चुके हैं। उनकी इस सेवा भावना की चारों ओर सराहना हो रही है।

जब समाज में रिश्तों की डोर कमजोर हो रही हो, ऐसे में आलोक रॉय जैसे लोग एक नई उम्मीद बनकर उभरते हैं। उनकी यह पहल न सिर्फ मानवता की मिसाल है, बल्कि आने वाली पीढ़ियों को यह सीख भी देती है कि बुजुर्ग हमारे अनुभवों की थाती हैं, जिनका सम्मान हर हाल में होना चाहिए।

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