कौशाम्बी: कुछ निरीक्षण सिर्फ औपचारिक होते हैं। लेकिन कुछ निरीक्षण व्यवस्था की जड़ें हिला देते हैं—सोमवार को सराय अकिल कोतवाली में एसपी राजेश कुमार का दौरा कुछ ऐसा ही था। बिना लाव-लश्कर, बिना किसी पूर्व सूचना के जब अफसर पहुंचे, तो कोतवाली की तस्वीर वो नहीं थी, जो होनी चाहिए थी। कार्यालय में तख्त पड़ा था, शायद वर्षों से ऐसे ही बैठते आ रहे हों। लेकिन आज वक़्त बदलने आया था।
एसपी बोले: “थाना घर नहीं, सिस्टम है! तख्त नहीं, कुर्सी होनी चाहिए।”
यह बात जितनी छोटी लगी, उसका असर उतना ही गहरा था। यह सिर्फ एक फर्नीचर बदलने की बात नहीं थी—यह कार्यसंस्कृति बदलने की चेतावनी थी।
निरीक्षण नहीं, आइना था ये
सीसीटीएनएस कक्ष, महिला हेल्प डेस्क, पुलिस मेस—एक-एक कमरे की परतें एसपी ने खोलीं। रजिस्टर से लेकर रवैये तक उन्होंने देखा और फिर कहा, “थाने सिर्फ चारदीवारी नहीं होते, ये कानून की ज़मीन पर खड़े विश्वास के स्तंभ होते हैं। इनका चरित्र तय करता है कि जनता पुलिस से कैसा व्यवहार पाएगी।”
पत्रकारों से बोले—“अपराध कम हैं, लेकिन सतर्कता ज़रूरी है”
स्थानीय पत्रकारों से चर्चा में एसपी राजेश कुमार ने साफ कहा कि कौशाम्बी अपेक्षाकृत शांत ज़िला है, पर इसका मतलब ये नहीं कि पुलिस ढीली हो जाए। उन्होंने बताया कि सभी थानों का निरीक्षण इसलिए हो रहा है ताकि किसी घटना की स्थिति में यह पता हो कि नजदीकी थाना कौन-सा है और कौन-सी फोर्स कितनी जल्दी पहुँच सकती है।
चौकियों के इंचार्जों से सीधे संवाद
थाना प्रभारी सुनील कुमार सिंह सहित सभी चौकी इंचार्जों को बुलाकर एसपी ने रजिस्टरों की जांच की, लेकिन सिर्फ आंकड़े नहीं देखे—उन्होंने पुलिसिंग की आत्मा की तलाश की। जिम्मेदारी, संवेदनशीलता और जवाबदेही—इन्हीं तीन शब्दों में उन्होंने पुलिस के भविष्य की रूपरेखा खींच दी।