Fawad Khan और वाणी कपूर की ‘Abir Gulal’ को लेकर विवाद, राज ठाकरे ने रिलीज़ पर रोक लगाने की मांग की

हिंदी फिल्म इंडस्ट्री हमेशा से विवादों का हिस्सा रही है, और अब एक नया विवाद सामने आया है फिल्म ‘Abir Gulal’ को लेकर। इस फिल्म में प्रमुख भूमिका निभा रहे हैं पाकिस्तानी अभिनेता Fawad Khan और बॉलीवुड अभिनेत्री वाणी कपूर। फिल्म का विषय, इसकी कहानी, और उसमें दिखाए गए कुछ संवेदनशील मुद्दे अब समाज में बहस का कारण बन गए हैं।

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Vaani Kapoor (@vaanikapoor)


राजनीतिक दृष्टिकोण से विवाद बढ़ने के साथ ही, राज ठाकरे ने महाराष्ट्र सरकार से इस फिल्म की रिलीज़ पर तत्काल रोक लगाने की मांग की है। इस लेख में हम इस विवाद को विस्तार से समझेंगे, फिल्म के बारे में जानकारी देंगे, और देखेंगे कि कैसे यह विवाद बॉलीवुड के भीतर और बाहर चर्चा का विषय बन गया है।

फिल्म ‘Abir Gulal’ का सार और कंटेंट

‘Abir Gulal’ एक रोमांटिक और ड्रामा फिल्म है जिसमें एक गहरी सामाजिक और राजनीतिक कहानी को दर्शाया गया है। फिल्म की मुख्य भूमिका में Fawad Khan और वाणी कपूर हैं, जिनके किरदार फिल्म में विभिन्न सामाजिक मुद्दों पर बात करते हैं।

फिल्म की कहानी दो पात्रों के इर्द-गिर्द घूमती है जो एक-दूसरे के प्रेम में पड़ते हैं, लेकिन उनके प्यार का रास्ता विभिन्न सामाजिक और राजनीतिक संघर्षों से भरा होता है। फिल्म में बहुत सारी संवेदनशील समस्याओं को छेड़ा गया है, जैसे धर्म, राजनीति, समाज की जटिलताएँ, और जातिवाद।

फिल्म के प्रमुख दृश्य

‘Abir Gulal’ में कुछ ऐसे दृश्य हैं जो दर्शकों को काफी प्रभावित करते हैं। इनमें से कुछ दृश्य राजनीतिक और सामाजिक संदर्भों में उकसाने वाले हो सकते हैं, जो विवाद का कारण बने हैं। उदाहरण के लिए, फिल्म के एक हिस्से में Fawad Khan का किरदार एक राजनीतिक पार्टी के समर्थन में बोलते हुए दिखाई देता है, जो कुछ लोगों को आपत्तिजनक लग सकता है।

फिल्म की प्रतिक्रिया

जब फिल्म का ट्रेलर रिलीज हुआ, तब सोशल मीडिया और फिल्म समीक्षकों ने इसे काफी सकारात्मक रूप से लिया था। हालांकि, जैसे-जैसे फिल्म का प्रचार बढ़ा, कुछ विशेष राजनीतिक और सामाजिक समूहों ने फिल्म के कंटेंट पर सवाल उठाए। उन्हें यह महसूस हुआ कि फिल्म में कुछ ऐसे दृश्य हैं जो समाज में नफरत और तनाव का कारण बन सकते हैं।

राज ठाकरे का विरोध और उनकी भूमिका

राज ठाकरे, जो महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) के प्रमुख हैं, हमेशा ही महाराष्ट्र की संस्कृति, पहचान और मराठी समुदाय के मुद्दों पर मुखर रहे हैं। उनका कहना है कि ‘Abir Gulal’ जैसी फिल्में केवल फिल्म इंडस्ट्री के व्यवसायिक लाभ के लिए बनाई जाती हैं, लेकिन इनका समाज पर दूरगामी असर पड़ता है।

विवाद की शुरुआत

राज ठाकरे ने इस फिल्म के प्रति अपनी आपत्ति तभी जताई थी जब फिल्म के कुछ हिस्सों के बारे में जानकारी मिली। उन्होंने आरोप लगाया कि फिल्म में कुछ ऐसा कंटेंट है जो महाराष्ट्र की संस्कृति और मराठी पहचान के लिए अपमानजनक हो सकता है। उनका कहना था कि फिल्म में मराठी संस्कृति का सम्मान नहीं किया गया और इसे समाज में असहमति और विवाद फैलाने के लिए बनाया गया।

राज ठाकरे की सरकार से अपील

राज ठाकरे ने महाराष्ट्र सरकार से फिल्म की रिलीज़ पर रोक लगाने की मांग की। उनका कहना था कि यह फिल्म महाराष्ट्र में एक राजनीतिक विवाद उत्पन्न कर सकती है, जो राज्य में शांति और एकता को नुकसान पहुंचा सकती है। उन्होंने फिल्म के कुछ दृश्यों को संदिग्ध बताते हुए कहा कि फिल्म का संदेश समाज में असहमति और उन्माद को बढ़ावा दे सकता है।

सामाजिक और राजनीतिक संदर्भ

इस विवाद में समाज और राजनीति दोनों ही महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। एक ओर जहां फिल्म के निर्माता इसे केवल एक काल्पनिक कहानी मानते हैं, वहीं दूसरी ओर राज ठाकरे जैसे नेता इसे एक गंभीर राजनीतिक मुद्दा मानते हैं।

फिल्म और राजनीति

‘Abir Gulal’ फिल्म का राजनीति से गहरा संबंध है। फिल्म के कुछ हिस्से राजनीति के इर्द-गिर्द घूमते हैं, और इसमें कुछ ऐसे विचारधाराएँ और सिद्धांत प्रस्तुत किए गए हैं जो राजनीतिक दृष्टिकोण से विवादित हो सकते हैं।

राज ठाकरे का कहना है कि फिल्म के निर्माता और निर्देशक ने जानबूझकर राजनीतिक संघर्षों को फिल्म में शामिल किया है, जिससे समाज में अस्थिरता पैदा हो सकती है। उनका कहना है कि अगर फिल्म में राजनीतिक मुद्दों को इस तरह से पेश किया जाता है, तो यह समाज में और भी अधिक विवाद और तनाव उत्पन्न करेगा।

समाज में फिल्म का प्रभाव

फिल्मों का समाज पर बड़ा असर होता है, खासकर जब फिल्म किसी विवादित या संवेदनशील मुद्दे को लेकर बनाई जाती है। ‘Abir Gulal’ के मामले में भी ऐसा ही हुआ है। जहां एक ओर फिल्म के निर्माता इसे समाज के विभिन्न पहलुओं को दर्शाने के रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर राज ठाकरे और उनके समर्थकों का कहना है कि फिल्म की कहानी और दृश्य समाज में भ्रम और विवाद उत्पन्न कर सकते हैं।

यह विवाद सिर्फ एक फिल्म तक सीमित नहीं है, बल्कि यह पूरे बॉलीवुड और फिल्म इंडस्ट्री की जिम्मेदारी पर सवाल उठाता है। क्या फिल्मों को बनाने से पहले सामाजिक और राजनीतिक पहलुओं को ध्यान में रखना चाहिए? क्या फिल्म निर्माता अपने काम को इस तरह से प्रस्तुत करने में सावधानी बरतते हैं, ताकि किसी समुदाय या संस्कृति को ठेस न पहुंचे?

सेंसर बोर्ड की भूमिका

फिल्मों के रिलीज़ होने से पहले, सेंसर बोर्ड द्वारा उनकी समीक्षा की जाती है। सेंसर बोर्ड का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि फिल्म में कोई भी अपत्तिजनक सामग्री या दृश्य न हो जो समाज के लिए हानिकारक हो।

‘Abir Gulal’ का सेंसर बोर्ड से पास होना

फिल्म ‘Abir Gulal’ को सेंसर बोर्ड से पहले ही मंजूरी मिल चुकी थी, और उसमें किसी भी प्रकार की आपत्ति नहीं थी। सेंसर बोर्ड ने फिल्म को ‘U/A’ (अंडर ऑडियंस एबल) प्रमाण पत्र दिया था, जिसका मतलब है कि यह फिल्म 12 वर्ष और उससे ऊपर के दर्शकों के लिए उपयुक्त है।

फिर भी, राज ठाकरे और उनके समर्थकों का यह कहना है कि सेंसर बोर्ड द्वारा अनुमोदित होने का यह मतलब नहीं है कि फिल्म समाज पर नकारात्मक प्रभाव नहीं डालेगी। उनका मानना है कि सेंसर बोर्ड को इस फिल्म के सामाजिक और राजनीतिक संदर्भों को ध्यान में रखते हुए इसे पुनः देखना चाहिए।

 

फिल्म के निर्माता और निर्देशक का पक्ष

फिल्म के निर्माता और निर्देशक ने राज ठाकरे के आरोपों का खंडन करते हुए कहा है कि ‘Abir Gulal’ एक काल्पनिक कहानी है और इसमें किसी भी प्रकार की राजनीतिक या सांप्रदायिक असहमति पैदा करने का उद्देश्य नहीं था।

निर्माता का बयान

निर्माताओं का कहना है कि फिल्म में जो मुद्दे उठाए गए हैं, उनका उद्देश्य केवल समाज की जटिलताओं को दिखाना है। उन्होंने यह भी कहा कि फिल्म में कोई भी दृश्य या संवाद किसी समुदाय के खिलाफ नहीं है और इसका उद्देश्य सिर्फ एक अच्छे और सकारात्मक संदेश को फैलाना है।

निर्माताओं का यह भी कहना था कि उन्होंने फिल्म में हर पहलू को संवेदनशीलता के साथ पेश किया है और इसे कभी भी किसी विशेष विचारधारा या समुदाय को चोट पहुंचाने के रूप में नहीं देखा गया।

निर्देशक का बयान

फिल्म के निर्देशक ने भी यह कहा कि फिल्म की कहानी समाज के विभिन्न पहलुओं को उजागर करती है, लेकिन उसका मकसद विवाद नहीं उत्पन्न करना था। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि फिल्म के कुछ दृश्य केवल कथा के हिस्से के रूप में हैं और उनका किसी विशेष राजनीतिक दल या विचारधारा से कोई संबंध नहीं है।

निष्कर्ष: क्या होगा फिल्म का भविष्य?

‘Abir Gulal’ फिल्म के मामले ने बॉलीवुड इंडस्ट्री को एक बार फिर से यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि क्या फिल्मों को बनाने से पहले उनका सामाजिक और राजनीतिक प्रभाव भी विचारणीय होना चाहिए। फिल्म निर्माता और निर्देशक अपनी कला और विचारों को स्वतंत्र रूप से प्रस्तुत करना चाहते हैं, लेकिन समाज में होने वाले प्रभावों को नकारा भी नहीं जा सकता।

फिल्म ‘Abir Gulal’ को लेकर जो विवाद शुरू हुआ है, वह न केवल एक फिल्म के बारे में है, बल्कि यह समाज और राजनीति के उस जटिल ताने-बाने को भी उजागर करता है, जो बॉलीवुड के सृजनात्मक कार्यों को प्रभावित करता है। आने वाले समय में यह देखना दिलचस्प होगा कि इस फिल्म का भविष्य क्या होता है, और क्या राज ठाकरे की मांग को सरकार द्वारा स्वीकार किया जाएगा।

Leave a Comment

error: Content is protected !!