उत्तर भारत में कपास उद्योग संकट में: श्वेत मक्खियों और गुलाबी बॉलवर्म का प्रकोप

उत्तर भारत, विशेष रूप से पंजाब, कपास उत्पादन में गंभीर संकट का सामना कर रहा है।

श्वेत मक्खी और गुलाबी बॉलवर्म जैसे कीटों के प्रकोप ने कपास की खेती को बुरी तरह प्रभावित किया है, जिससे किसानों और संबंधित उद्योगों को भारी नुकसान हो रहा है।

संकट के मुख्य कारण:

कपास की खेती में गिरावट:

पंजाब में तीन दशक पहले 8 लाख हेक्टेयर में कपास की खेती होती थी, जो अब घटकर केवल 1 लाख हेक्टेयर रह गई है। यह गिरावट किसानों के लिए आर्थिक रूप से विनाशकारी है और क्षेत्र की कृषि अर्थव्यवस्था को भी प्रभावित करती है।

जिनिंग उद्योग पर प्रभाव:

कपास उत्पादन में कमी के कारण जिनिंग उद्योग भी संकट में है। पंजाब में जिनिंग इकाइयों की संख्या 2004 में 422 से घटकर अब केवल 22 रह गई है, जिससे रोजगार के अवसर कम हो रहे हैं और स्थानीय अर्थव्यवस्था प्रभावित हो रही है।

कीटों का प्रकोप:

गुलाबी बॉलवर्म और श्वेत मक्खी जैसी कीटों ने कपास की फसलों को भारी नुकसान पहुंचाया है, जिससे उपज में कमी आई है और किसानों की लागत बढ़ गई है।

बोलगार्ड-3: एक संभावित समाधान:

किसान बोलगार्ड-3 नामक आनुवंशिक रूप से संशोधित (जीएम) कपास किस्म की मंजूरी की मांग कर रहे हैं, जो कीटों के खिलाफ बेहतर प्रतिरोध प्रदान करती है।

बीटी तकनीक:

बोलगार्ड-3 में बीटी (बैसिलस थुरिंजिनेसिस) तकनीक का उपयोग किया गया है। बीटी जीन पौधों में कीटों के लिए विषैले प्रोटीन का उत्पादन करते हैं, जिससे कीट मर जाते हैं।

बोलगार्ड-3 की विशेषताएं:

बोलगार्ड-3 में तीन बीटी प्रोटीन (क्राई1एसी, क्राई2एबी और वीआईपी3ए) होते हैं, जो कीटों के खिलाफ अधिक प्रभावी सुरक्षा प्रदान करते हैं। यह बोलगार्ड-2 की तुलना में अधिक शक्तिशाली है, जिसमें केवल दो बीटी प्रोटीन होते हैं।

कीटों के खिलाफ प्रतिरोध:

बोलगार्ड-3 गुलाबी बॉलवर्म और अन्य लेपिडोप्टेरन कीटों के खिलाफ बेहतर प्रतिरोध प्रदान करता है, जिससे किसानों को कीटनाशकों पर निर्भरता कम करने और उपज बढ़ाने में मदद मिलती है।

बोलगार्ड-3 का महत्व:

वर्तमान बीटी कपास की विफलता:

वर्तमान में उपयोग किए जाने वाले बोलगार्ड-2 कपास में कीटों के प्रति प्रतिरोधक क्षमता कम हो रही है, जिससे किसानों को भारी नुकसान हो रहा है।

बोलगार्ड-3 इस समस्या का समाधान प्रदान कर सकता है।\

 

 

कीटनाशकों पर निर्भरता में कमी:

बोलगार्ड-3 के उपयोग से कीटनाशकों की आवश्यकता कम हो जाएगी, जिससे किसानों की लागत कम होगी और पर्यावरण को भी लाभ होगा।

उत्पादकता और लाभप्रदता में वृद्धि:

बोलगार्ड-3 कपास की उत्पादकता में वृद्धि करेगा, जिससे किसानों की आय बढ़ेगी और वे अधिक लाभ कमा सकेंगे।

नियामक चुनौतियां:

  • अनुमोदन में देरी: बोलगार्ड-3 को अभी तक भारत में मंजूरी नहीं मिली है। नियामक प्रक्रिया में देरी के कारण किसान इस तकनीक का लाभ नहीं उठा पा रहे हैं।
  • जीएम फसलों पर बहस: जीएम फसलों के सुरक्षा और पर्यावरणीय प्रभावों पर बहस के कारण भी अनुमोदन प्रक्रिया में देरी हो रही है।

 

भविष्य की संभावनाएं:

  • उन्नत तकनीकों का उपयोग: ब्राजील जैसे अन्य देश पहले से ही बोलगार्ड-5 जैसी उन्नत तकनीकों का उपयोग कर रहे हैं और उच्च उपज प्राप्त कर रहे हैं। भारत को भी इन तकनीकों को अपनाने की आवश्यकता है।
  • किसानों की मांग: किसान बोलगार्ड-3 की मंजूरी के लिए लगातार दबाव डाल रहे हैं। सरकार को किसानों की मांगों को ध्यान में रखते हुए त्वरित निर्णय लेने की आवश्यकता है।
  • अनुसंधान और विकास: कपास की खेती में कीटों के खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता विकसित करने के लिए अनुसंधान और विकास को बढ़ावा देना आवश्यक है।

निष्कर्ष:

उत्तर भारत के कपास उद्योग को बचाने के लिए बोलगार्ड-3 जैसी उन्नत तकनीकों को अपनाना आवश्यक है।

सरकार को किसानों की मांगों को ध्यान में रखते हुए त्वरित निर्णय लेने और नियामक प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करने की आवश्यकता है।

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