केंद्र सरकार ने तमिलनाडु को समग्र शिक्षा योजना के तहत 2,152 करोड़ रुपये की धनराशि रोक दी है। इसका मुख्य कारण तमिलनाडु द्वारा राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 के त्रि-भाषा फॉर्मूले को लागू करने से इनकार करना है। यह विवाद त्रि-भाषा नीति की जटिलताओं और भाषाई विविधता के प्रति संवेदनशीलता को उजागर करता है।
त्रि-भाषा फॉर्मूला क्या है?
त्रि-भाषा फॉर्मूला 1968 की राष्ट्रीय शिक्षा नीति में शुरू की गई एक भाषा नीति है, जिसका उद्देश्य भारत में भाषा शिक्षा को मानकीकृत करना है। इसका उद्देश्य बहुभाषावाद, राष्ट्रीय एकता और प्रशासनिक दक्षता को बढ़ावा देना है।
तमिलनाडु का विरोध:
तमिलनाडु दो-भाषा नीति (तमिल और अंग्रेजी) का पालन करता है और त्रि-भाषा फॉर्मूले को हिंदी थोपने के रूप में देखता है। राज्य का मानना है कि यह नीति उसकी भाषाई पहचान के लिए खतरा है।
एनईपी 2020 और त्रि-भाषा नीति:
एनईपी 2020 त्रि-भाषा नीति में लचीलापन प्रदान करता है, जिससे राज्य और छात्र तीन भाषाओं का चयन कर सकते हैं। यह नीति किसी भी राज्य पर कोई विशिष्ट भाषा अनिवार्य नहीं करती है और मातृभाषा में शिक्षा को प्रोत्साहित करती है।
त्रि-भाषा नीति का महत्व:
- बहुभाषावाद को बढ़ावा देना।
- राष्ट्रीय एकीकरण को मजबूत करना।
- वैश्विक क्षमता को बढ़ाना।
- मातृभाषा में शिक्षा को बढ़ावा देना
विवाद के मुद्दे:
- हिंदी थोपने की धारणा।
- संसाधनों की कमी।
- सांस्कृतिक प्रतिरोध।
- राजनीतिक तनाव।
निष्कर्ष:
- त्रि-भाषा नीति के सफल कार्यान्वयन के लिए क्षेत्रीय पहचान का सम्मान करना और लचीलापन सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है।
- रचनात्मक संवाद और संसाधन आवंटन इस विवाद को सुलझाने में मदद कर सकते हैं