कौशाम्बी: 9 महीने से लापता बुजुर्ग कूड़ा बीनते मिले, बेटा गले लगाकर खूब रोया

कौशाम्बी। होली सिर्फ रंगों का नहीं, बल्कि इंसानियत और बिछड़ों को मिलाने का भी त्योहार है। इस बार यह पर्व एक परिवार के लिए जीवनभर का सबसे यादगार दिन बन गया, जब 9 महीने से लापता रमाशंकर अचानक मिल गए। बेटा राजेश, जिसने अपने पिता को ढूंढने की सारी उम्मीदें खो दी थीं, जब सामने आया तो उसकी आंखों से आंसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे।

*सड़क किनारे मिले लाचार बुजुर्ग*

होली के दिन जब चारों ओर खुशियां मनाई जा रही थीं, तभी मंझनपुर नगर पालिका कार्यालय के पास ओसा वृद्धाश्रम के संचालक आलोक रॉय की नजर एक बुजुर्ग पर पड़ी, जो कूड़ा बीन रहे थे। उनकी हालत दयनीय थी—फटेहाल कपड़े, उलझे बाल और चेहरे पर भूख-प्यास की थकान साफ झलक रही थी।

आलोक रॉय ने इंसानियत दिखाते हुए तुरंत अपनी बाइक रोकी और बुजुर्ग से उनका नाम-पता पूछा। लेकिन वे कुछ भी स्पष्ट नहीं बता पा रहे थे। इससे यह अंदाजा हुआ कि या तो वे मानसिक रूप से अस्वस्थ हैं, या कोई गहरी पीड़ा उन्हें बोलने से रोक रही है।

_*बुजुर्ग को दिया सम्मान, फिर खोजा उनका परिवार*_

आलोक रॉय ने बिना समय गंवाए बुजुर्ग को अपनी बाइक पर बैठाया और वृद्धाश्रम ले गए। वहां उन्हें नहलाया गया, साफ कपड़े पहनाए गए और भरपेट भोजन कराया गया। भोजन करते वक्त उनके चेहरे पर संतुष्टि की झलक दिखी, जो शायद महीनों बाद उन्हें नसीब हुई थी।

इसके बाद आलोक रॉय ने उनकी पहचान जानने की कोशिश की। धीरे-धीरे बातचीत से पता चला कि यह बुजुर्ग गाजीपुर निवासी रमाशंकर हैं, जो 9 महीने पहले घर से लापता हो गए थे। यह खबर मिलते ही आलोक रॉय ने उनके बेटे राजेश कुमार से संपर्क किया।

_*पिता को देखते ही फूट-फूटकर रो पड़ा बेटा*_

जैसे ही राजेश को यह खबर मिली, वह भावनाओं से भर गया और बिना देर किए वृद्धाश्रम पहुंचा। पिता को सामने देखते ही उसकी आंखों से आंसू छलक पड़े। वह दौड़कर उनके गले लग गया और रोते हुए कहा, “पापा, कहां चले गए थे? हम आपको हर जगह ढूंढ रहे थे… अब आपको एक पल के लिए भी दूर नहीं जाने दूंगा!”

यह दृश्य देखकर वृद्धाश्रम में मौजूद सभी लोग भावुक हो गए। रमाशंकर भी बेटे को पहचानते ही रो पड़े। वर्षों की थकान, दर्द और जुदाई का दुख एक ही पल में बह निकला।

_*”इस होली पर मिला सबसे अनमोल तोहफा”*_

राजेश ने वृद्धाश्रम संचालक आलोक रॉय का तहे दिल से धन्यवाद किया और कहा, “इस बार मेरी होली सच में रंगीन हो गई, क्योंकि मुझे मेरा सबसे अनमोल रंग—मेरे पापा वापस मिल गए।”

_*इंसानियत का रंग सबसे बड़ा*_

यह घटना साबित करती है कि होली सिर्फ रंगों और खुशियों का त्योहार नहीं, बल्कि इंसानियत और रिश्तों को जोड़ने का भी पर्व है। जहां कुछ लोग अपने परिवार के साथ जश्न मना रहे थे, वहीं आलोक रॉय ने अपने नेक कार्य से एक बिछड़े बेटे को उसका पिता लौटा दिया।

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